गुरुवार 2 अक्तूबर 2025 - 17:44
युवा पीढ़ी की नैतिक शिक्षा हमारे हाथ में है या दूसरों को सौंपी गई है?

हौज़ा / सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग एक ऐसा युग है जिसमें कोई केंद्रीयता नहीं बची है। दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी व्यक्ति चाहे तो दूसरों के लिए सामग्री तैयार कर सकता है। वे न तो हमारा इंतज़ार करते हैं और न ही हमारी अनुमति मांगते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी I महिलाएँ परिवार और सांस्कृतिक व्यवस्था की रीढ़ होती हैं, लेकिन आज उन पर सबसे बड़ा सांस्कृतिक हमला हो रहा है। मीडिया और सोशल नेटवर्क अपने विनाशकारी कार्यक्रमों के ज़रिए पारिवारिक और सामाजिक बुनियाद को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस विषय पर, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन अली रहमती (कुरान और हदीस शोध संस्थान में नैतिकता के शोधकर्ता और शिक्षक) ने एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया है।

रियलिटी शो "ज़िन रोज़" (आज की महिलाएँ) और अर्थहीन सीमाएँ

"इश्क आब्दी" अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि यूट्यूब पर एक नया रियलिटी शो "ज़िन रोज़" शुरू हो गया। इस कार्यक्रम का निर्माण तुर्की में किया जा रहा है और इसकी मेहनाज अफशर (ईरानी अभिनेत्री) इसकी होस्ट हैं। कार्यक्रम का मुख्य विषय "फ़ैशन और स्टाइल" है, और इसमें केवल युवतियाँ ही भाग लेती हैं, जो हर बार एक विशेष पोशाक पहनकर निर्णायक मंडल के सामने पेश होती हैं।

यह कार्यक्रम और इसी तरह के अन्य कार्यक्रम नैतिकता, समाज और संस्कृति के संदर्भ में कई चुनौतियाँ पैदा कर रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे समाज की ज़िम्मेदार संस्थाएँ इनके प्रभावों को गंभीरता से लें, उन पर शोध करें और समाधान खोजें।

महिलाएँ, अभी भी चर्चा का विषय हैं; और भविष्य में और भी महत्वपूर्ण होंगी

ऐसे कार्यक्रमों का मुख्य लक्ष्य महिलाएँ और विशेष रूप से युवतियाँ होती हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि आने वाले समय में महिलाएँ और लड़कियाँ सबसे महत्वपूर्ण विषय बनी रहेंगी।

आज की पीढ़ी अपनी माताओं से कई मायनों में अलग है:

यह ज़्यादा जागरूक है, समाज में ज़्यादा सक्रिय है, और परंपराओं का गहन अध्ययन करती है। इसलिए, उनकी क्षमताओं को पहचानना, उनकी रुचियों और ज़रूरतों को ध्यान में रखना और उचित तथा इस्लामी संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम बनाना ज़रूरी है ताकि उन्हें अनैतिक सामग्री से बचाया जा सके।

यह बाढ़ रुकने वाली नहीं है!

ज़िम्मेदार संस्थाओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि कुछ कार्यक्रमों के बाद यह प्रलोभन समाप्त हो जाएगा। इस उद्योग में पूँजी और प्रतिष्ठा इतनी ज़्यादा है कि हर दिन नए कार्यक्रम सामने आते रहते हैं।

इसी तरह, यह विचार भी ग़लत है कि अगर हम इन कार्यक्रमों को नज़रअंदाज़ कर देंगे, तो ये अपने आप ही भुला दिए जाएँगे। यह सामग्री इंटरनेट पर हमेशा मौजूद रहती है और आसानी से उपलब्ध होती है। इसलिए, हमें इनकी तुलना में सकारात्मक और आकर्षक कार्यक्रम बनाने चाहिए।

"ज़िन रोज़" (आज की महिलाएँ) जीवनशैली में बदलाव और छिपा संदेश

यह कार्यक्रम सिर्फ़ कपड़ों और फ़ैशन के बारे में नहीं है, बल्कि एक ऐसी जीवनशैली को बढ़ावा देता है जो हमारे सामाजिक और धार्मिक मूल्यों के विपरीत है। ये बदलाव धीरे-धीरे हमारी आँखों के सामने हो रहे हैं, लेकिन चूँकि ये बदलाव धीरे-धीरे हो रहे हैं, इसलिए हमें इनका एहसास नहीं होता।

इसलिए सांस्कृतिक संस्थाओं के लिए यह ज़रूरी है कि वे निरंतर शोध करें और समय पर उचित प्रतिक्रिया दें।

वस्त्र: सिर्फ़ घूँघट नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक

"ज़िन रोज़" (आज की महिलाएँ) जैसे कार्यक्रम मुख्य रूप से कपड़ों पर केंद्रित होते हैं। आज, वस्त्र केवल शरीर ढकने का साधन नहीं, बल्कि व्यक्ति के विचारों, सभ्यता और नैतिकता का प्रकटीकरण हैं।

इन कार्यक्रमों में पहनावे की ऐसी शैली दिखाई जाती है जो हमारे धार्मिक मूल्यों से मेल नहीं खाती। और धीरे-धीरे यह फैशन हमारे शहरों की सड़कों पर भी दिखाई देने लगा है।

इसलिए, यह ज़रूरी है कि हम युवाओं की रुचियों को समझते हुए, स्थानीय और इस्लामी विविधता वाले ऐसे परिधान प्रस्तुत करें जो सुंदर और पवित्र दोनों हों। इसके लिए स्थानीय डिज़ाइनरों और उत्पादकों का सहयोग ज़रूरी है।

शरीर से विमुखता; एक गहरी समस्या

आधुनिक दुनिया में, "शरीर" एक केंद्रीय विषय बन गया है। महिलाओं में प्लास्टिक सर्जरी, मूर्तिकला और सौंदर्यीकरण का बढ़ता चलन इसी बदलाव का संकेत है।

यह चलन दरअसल "शरीर" को लेकर नए मूल्य गढ़ रहा है जो अक्सर हमारे नैतिक सिद्धांतों से टकराते हैं। नतीजा यह होता है कि महिलाएं अपने शरीर को लेकर शर्मिंदा होने लगती हैं और उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है।

इन समस्याओं का समाधान यह है कि पहले इस नई सोच की जड़ों को पहचाना जाए और फिर युवाओं के साथ तार्किक और करुणामय संवाद किया जाए।

पीढ़ीगत बदलाव: दरवाज़े पर नहीं, बल्कि अंदर ही

हर पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी से अलग होती है, लेकिन आज इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इस बदलाव को कई गुना तेज़ कर दिया है।

"ज़िन रोज़" जैसे कार्यक्रम निर्माता इसी तथ्य को समझते हुए विषय-वस्तु तैयार करते हैं। अगर हम भी इस तथ्य की अनदेखी करते हैं और इस्लामी संस्कृति के आलोक में नए और आकर्षक कार्यक्रम नहीं बनाते हैं, तो हम युवाओं पर अपना प्रभाव खो देंगे।

नए कार्यक्रमों का आगमन: समय कम है

"इश्क आब्दी" और "ज़िन रोज़" अभी शुरू भी नहीं हुए हैं कि कनाडा से एक और कार्यक्रम की घोषणा ने हलचल मचा दी है, जिसे पहले से भी ज़्यादा अनैतिक बताया जा रहा है।

चूँकि इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाना अप्रभावी है, इसलिए ज़रूरी है कि हम युवाओं और अभिभावकों को इन कार्यक्रमों के खतरों के बारे में शिक्षित करें और वैकल्पिक, स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करें। अन्यथा, हमारे युवा इनके निरंतर दर्शक बन जाएँगे।

नैतिक मानदंडों का उलटा होना

ये कार्यक्रम युवाओं के मन से हमारे धार्मिक मानदंडों को मिटा रहे हैं और नए मानदंड स्थापित कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए: शुद्धता, सादगी और सम्मान का अवमूल्यन, जबकि फिजूलखर्ची, दुर्व्यवहार और अभद्र भाषा को "स्वीकार्य" बनाना। इसलिए अभिभावकों, शिक्षकों और सभी संबंधित व्यक्तियों को युवाओं का मैत्रीपूर्ण संवाद के माध्यम से मार्गदर्शन करना चाहिए।

समाधान: संचार, विश्वास और वैकल्पिक सामग्री

आज सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग है। दुनिया भर में हर कोई अपनी सामग्री खुद बना सकता है। हमें युवाओं के करीब जाना होगा, उनकी रुचियों को समझना होगा और आकर्षक विकल्प उपलब्ध कराने होंगे।

याद रखें: युवा वे समस्या नहीं, बल्कि समाधान का हिस्सा हैं। जब उन पर भरोसा किया जाएगा, तो वे भरोसा करेंगे। जब उनका सम्मान किया जाएगा, तो वे सम्मान करेंगे। और जब दोस्ती दिखाई जाएगी, तो वे कार्रवाई में भागीदार बनेंगे। युवा पीढ़ी में निवेश करना वास्तव में भविष्य में सबसे लाभदायक निवेश है।

✦ निष्कर्ष: यदि हम समय बर्बाद करते हैं और इस ज़िम्मेदारी से बेखबर रहते हैं, तो हमारी नई पीढ़ी की नैतिक शिक्षा अजनबी और गैर-ज़िम्मेदार हाथों में पड़ जाएगी।

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